मुंबई एक ऐसा शहर है जो हर पल एक नया रूप धारण करता है। इसकी कोई एक परिभाषा नहीं हो सकती। यह एक अवधारणा की तरह है, जो सपनों और इच्छाओं को उसी गति से रचता और तोड़ता है जैसे इसकी लोकल ट्रेनें दौड़ती हैं।
पायल कपाड़िया की फिल्म (All We Imagine As Light) ऑल वी इमैजिन ऐज़ लाइट “मैक्सिमम सिटी” का एक अंतरंग और गहराई से देखा गया चित्रण है। लेकिन यह फिल्म मुंबई के रोमांटिक और महिमामंडित दृष्टिकोण को छोड़ देती है। फिल्म के शुरुआती दृश्यों में कपाड़िया मुंबई को संघर्ष का प्रतीक, एक चकाचौंध भरा सपना और एक ऐसा मृगतृष्णा प्रस्तुत करती हैं, जो जितना देती है, उससे कहीं अधिक छीन लेती है।
सामाजिक वर्गों की कहानियों से होती है शुरुआत
फिल्म की शुरुआत वर्किंग क्लास के बेनाम आवाज़ों से होती है, जो अपने-अपने मुंबई अनुभवों को साझा करते हैं। कोई कहता है कि दो दशकों तक यहां रहने के बावजूद, वह इसे अपना घर कहने से डरता है क्योंकि वह कभी भी यहां से निकलने को मजबूर हो सकता है। एक और व्यक्ति याद करता है कि जब वह पहली बार मुंबई आया था, तो मछलियों की बदबू के कारण रातभर सो नहीं पाया था।
जल्द ही फिल्म दो मलयाली नर्सों पर केंद्रित हो जाती है—प्रभा (कानी कुसरुति) और अनु (दिव्या प्रभा)। प्रभा, 30 की उम्र पार कर चुकी, खिड़की के पास खड़ी होकर रात के अंधेरे में खोई हुई है। दूसरी ओर, उसकी युवा रूममेट अनु सीट पर लेटी हुई दिनभर की थकावट मिटा रही है।
दो किरदार, दो अलग व्यक्तित्व
प्रभा और अनु उम्र ही नहीं, अपने व्यक्तित्व, इतिहास और रहस्यों में भी एकदम अलग हैं। प्रभा एक जिम्मेदार और शांत स्वभाव की महिला है, जो अपने अलग हो चुके पति की अनुपस्थिति से जूझ रही है। दूसरी तरफ, अनु युवा और साहसी है, जो एक मुस्लिम लड़के शियाज़ (ह्रिदु हारून) के साथ गुप्त रिश्ते में है और मुंबई की अनदेखी में इसे निभा रही है।
मुंबई से कोंकण के बीच बदलता परिदृश्य
118 मिनट की इस फिल्म का पहला भाग मुंबई के संघर्ष को दिखाता है। इंटरवल के बाद, फिल्म कोंकण के समुद्र तट गांव में स्थानांतरित होती है। पुनर्वास के कारण शहर छोड़ने को मजबूर परवती (छाया कदम) अपनी सहायक प्रभा और अनु के साथ गांव लौट जाती है। मुंबई की हलचल से विपरीत, इस शांत गांव में उन्हें वह स्वतंत्रता मिलती है जिसकी तलाश वे लंबे समय से कर रही थीं।
भावनाओं और राजनीति का कच्चा सच
फिल्म मुंबई की आत्मा में गहराई से जड़ें जमाए हुए है, लेकिन इसमें वैश्विक दृष्टिकोण भी झलकता है। यह एक सिनेमाई अनुभव है जो मीर नायर की फिल्मों की तरह कच्चा और निर्भीक राजनीतिक टिप्पणी से भरा है।
रणबीर दास की सिनेमैटोग्राफी और क्लेमेंट पिंटो की एडिटिंग इतनी तरल है कि दृश्य एक-दूसरे में घुल जाते हैं। प्रभा का अपने पति से बिना बात किए एक साल बाद एक राइस कुकर गिफ्ट मिलने का दृश्य दिल को छू जाता है। इसी तरह, समुद्र तट पर एक अजनबी से प्रभा की बातचीत उसे असली और कल्पना के बीच लाकर खड़ा कर देती है।
फिल्म का सशक्त संदेश
फिल्म का सबसे शक्तिशाली क्षण तब आता है जब अनु एक बुर्के का उपयोग अपनी यौन स्वतंत्रता को व्यक्त करने के लिए करती है। शियाज़ के घर में अकेले समय बिताने के लिए वह इसका इस्तेमाल करती है। हालांकि योजना असफल होती है, लेकिन उनकी अंतर्धार्मिक प्रेम कहानी दर्शकों के दिलों में गहरी छाप छोड़ जाती है।
पायल कपाड़िया ने साधारण चीज़ों में असाधारणता खोजने की कला में महारत हासिल की है। ऑल वी इमैजिन ऐज़ लाइट न केवल भारतीय सिनेमा का उत्कृष्ट उदाहरण है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी खूब सराहा जा रहा है।
अंतत:-
2024 के अंत तक, यह फिल्म भारतीय सिनेमा में बदलाव की एक मिसाल है। इसकी निर्भीकता, कथा की सादगी और भावनात्मक गहराई इसे दर्शकों के दिलों में एक स्थायी स्थान देती है। यह फिल्म दर्शकों को यह याद दिलाती है कि भारतीय प्रतिभा को पहचानने के लिए विदेशी प्रशंसा की आवश्यकता क्यों नहीं होनी चाहिए।
Article by M.darshan
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